Pratibha singh

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सावन का एक दिन

सावन का महीने का दिन था वो। रिमझिम फुहार पड़ रही थी। यूं तो पिछले दो दिनों से झड़ी लगी थी। पर आज सुबह जरा मौसम फ़टका हुआ तो जमुनिया ने अपने मैके की राह ली। कल राखी का त्योहार है कौन जाने बूंदाबांदी रुकी ना रुकी। इसलिए जमुनिया एक दिन पहले ही निकल ली थी। 
अभी पिछले ही तो साल ब्याह हुआ था जमुनिया का। पर गांव से बारात आई थी। जमुनिया ने सुना था कि उसका होने वाला दूल्हा दिल्ली में नौकरी करता है। वो तो ये सुन फूली नही समा रही थी। अपनी सब सहेलियों को बोलती फिरती-"अरे लाली तुमको पता है का कि हमरे उ कहाँ नौकरी करते है?"
लाली ये सुन उकता कर कहती-"हां हां हमरे को पता है। काहे की दुई दिन से ई सुन सुन के हमार कान दुखन लागे है।"
जमुनिया ये सुन फिस्स से हंस देती-"चल मुई हमरे से जले है तू।" 
जमुनिया के सास ससुर थे नही। दो ननदें थी जो अपने अपने घर की हो चुकी थी। इसलिए राखी पर जमुनिया अकेले ही पोटली उठा मैके को जा रही थी। वो मन में सोचती जा रही थी-"हमार का किस्मत है...ना सास मिली ना ससुर। आज मैके की राह जमुनिया अकेली ना जाती अगर हमार  देवर जेठ होते।" 
ससुराल से मैके का रास्ता कोई तीस किलोमीटर का था। बीस किलोमीटर तक तो बस छोड़ जाती थी उसके बाद का रास्ता या तो पैदल तय करना होता था या फिर कोई ट्रैक्टर गाड़ी वाले से रास्ता लेलो। 
अब तो जमुनिया के मैके को पक्की रोड बन रही थी तो वाहन ज्यादा आने जाने लगे थे। 
जमुनिया चलती जा रही थी और आगे पीछे रुक कर देख लेती। जब कुछ ना दिखता तो बड़बड़ाती-"मुई एक्को फटफटिया तक ना दिख रही।" और फिर से। हाथ झटकारती चल देती। 
बादलों के आवारा टुकड़ो ने जैसे ही रास्ता छोड़ा तैसे ही सूरज देवता पूरे प्रकोप से बरस पड़े। बारिश के बाद की धूप जेठ महीने से भी ज्यादा तेज होती है। जमुनिया को भी रुक कर रहा किनारे खड़े गूलर के पेड़ की छांव में रुकना पड़ा। 
"एक तो मुई फटफटिया ना दीख रही ऊपर से ये गर्मी उबाल मारे है।" उसने अपने साड़ी के पल्ले से हवा करते हुए गुस्से में कहा। 
जमुनिया को पेड़ के नीचे बैठे घड़ी भर हुआ होगा कि उसे दूर से आती एक सफेद गाड़ी दिखाई दी। उसके शरीर में स्फूर्ति का संचार हो गया। वो तुरन्त उठी अपना थैला उठाया और राह रोक के खड़ी हो गयी। 
गाड़ी शहर की ओर से आ रही थी। उसमें चार शहरी से दिखते लड़के बैठे थे। 
जमुनिया को बीच रास्ते खड़ा देख गाड़ी रोक कर पूछा-"हे बीच में क्यो खड़ी हो?"
जमुनिया लपक कर पास आई और लगभग खुशामद करती सी बोली-"ऐ भैया हमरे को ज़रा पास के गांव तक छोड दोगे का?"
वो लड़के ने अपने साथ वालो को लड़का देखा और फिर इनकार के स्वर में बोला-"हम लोग कही और जा रहे है।"
जमुनिया ने एक बार और कोशिश की-"ए भैया जी और कहाँ कैसे जाओगे? रास्ता तो उ गावँ से ही होकर जाता है। जरा छोड़ दो ना भैया देखो ना केतना गर्मी है और लम्बा रास्ता पड़ा है केतना?"
अब जो लड़का पीछे बैठा था वो आगे वाले लड़के से बोला-"बैठा ले ना....।" चारो लड़को ने एक दूसरे की ओर देखा आंखों ही आंखों में कुछ कहा गया जिसे भोली जमुनिया बिल्कुल नही समझ पाई। 
उन लड़कों ने उसे पीछे बैठा लिया। जमुनिया खुश थी अब कुछ ही देर में वो मैके पहुँच जाएगी। उसने बढ़िया चमकीली पन्नी वाली राखी खरीदी थी जिसे वो अपने भाई की कलाई पर बांधने वाली थी। मां से मिले भी कितने दिन हो गए थे। जमुनिया का मन रह रह कर हुलस उठता था। वो जब एकदम से पहुँचेगी तो कैसे सब चौंक जाएंगे। क्या कहेगी अम्मा, कैसे आई अकेली? 
जमुनिया अपनी सोच में ऐसी खोई हुई थी कि उसे रास्ते का होश नही था। जब काफी देर बाद भी गांव की मेड ना दिखी तो उसने गाड़ी चलाने वाले लड़के से पूछा-"काहे भैया और केतना दूर है? कौन सा रास्ता ले जा रहे हो?"
वो लड़का बोला-"दूसरे रास्ते से जा रहे है।"
जमुनिया ने सुना तो हड़बड़ा गयी। दूसरा रास्ता तो वो कभी न सुनी-"दूसरा रास्ता कौनो सा है? हमार तो ई गांव का जन्म है पर हम तो कभी ना सुने दूसर रास्ता।"
वो लड़का गाड़ी को तेज दौड़ाता हुआ बोला-"नया रोड जो बना है ना......उसी के साथ एक दूसरा रास्ता भी बन गया है। वही से जा रहे है। वो पहले वाला रास्ता उखड़ गया है।"
  "अच्छा तो ई बात है। चलो ई अच्छा हुआ कि अब पक्का रौडो बन गया। नाही तो बरसात में रास्ते का पूरा नाला ही बन जाता था। पता जब हम छोटे थे तो ई गांव वाले रास्ते में तैरा करते थे।"
जमुनिया की इस बात का उन लड़कों ने कोई जवाब नही दिया। बस उनकी आंखों में कुछ चल रहा था जिससे जमुनिया अनजान थी। 
थोड़ी देर बाद उन्होंने एक जंगली रास्ते पर जाकर गाड़ी रोक दी। शाम का धुंधलका घिर आया था। आसमान में काले घने मेघ छा गए थे जिससे अंधेरा और गहरा गया था। ठंडी तेज झकझोरती हवा चलने लगी थी। गाड़ी जैसे ही जंगल में रुकी जमुनिया के मन में खुटका हुआ-"ए भैया इहां काहे गाड़ी रोक दी? ई तो हमरे गांव का रास्ता ना है। ए भैया ई का कर रहे हो?" जमुनिया को एक। लड़के ने पकड़ कर पेड़ो की ओट में खींच लिया था। 
"चुप साली बहुत बोलती है।"
"ए भैया छोड़ दो हमको नही तो हम चिल्लायेंगे।" जमुनिया छूटने के लिए पूरा जोर लगा रही थी। 
"हां चिल्लाओ यहां कौन सुनेगा।" उन सबने उसे घेर लिया था। 
जमुनिया अब समझ गयी थी कि आगे क्या होने वाला है। वो दोनों हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए बोली-"ऐ भैया छोड़ दो हमको तुमको राखी का वास्ता।"
तभी एक लड़का दारू की भभक उड़ाता हुआ बोला-"ऐ हम क्या तेरे भाई लगते है जो राखी का वास्ता दे रही है?"
"केऊ के तो भाई लगते होंगे...तुमको उ को वास्ता। कल राखी है....और आज तुम एक बहिनी की इज्जत लूटोगे। हमको छोड़ दो भैया , चाहो तो हमरी जान लेलो पर ई पाप ना करो हमपे।" जमुनिया उसके पैर पकड़ लिए।
"चुप साली पहले तो खुद आकर लिफ्ट मांगती है और अब ड्रामे कर रही है।"
"ए भैया हम तुमसे कब लिफट मांगे? मत देना हमको लिफट। पर हमको छोड़ दो। जाने दो हमको।" 
पर उन हवश के अंधे जानवरो पर कोई असर नही हुआ। वो बारी बारी कर उसकी इज्जत तार तार करते रहे। और जब मन भर गया तो जमुनिया को वही रोता कलपता छोड़ चले गए। 
जमुनिया अपनी लूटी अस्मत और फटे कपड़ो को सम्हलती हिचकियाँ लेती रही। 
"अब का करी हम? अगर उनको पता चला तो उ हमरे को छोड़ देंगे, हम कहाँ जाई फिर। भैया को बताया तो उ की इज्जत खराब हुई जाएगी। हम का करे विधाता अब।" जमुनिया माथा पीट पीट कर चिल्लाती रही। 
बहुत रोने और सोचने के बाद यही ठीक लगा कि वो चुपचाप अपने ससुराल वापिस जाएगी और किसी को नही बताएगी की का हुआ उसके साथ।  
साथ लाई पोटली से उसने कपडे बदले और हुलिया ठीक कर घिसटती सी चल दी वापिस। अपने गांव जी मेड पर आ उसने एक नजर उठा अपने गांव को देखा और फिर आसमान की ओर देखा और ऊपर देख बोली-"का विधना रच दिए हो तुम विधाता? औरत का अपनी ही देही पर कोनऊ जोर नही। राह चलता कौनउ आता है और जोर बता के चला जाता है। और औरत अपनी देही की पीड़ा बताई भी ना सकती।" और ये कह वो फफक कर रो पड़ी। उसका रोना बादलों की गरज में कही छिप गया। सावन का बादल भी मानो उसे रोता देख उमड़ कर रो पड़ा हो। और जमुनिया मुड़ मुड़ कर गांव को देखती बारिश में आंसू बहाती वापिस लौट गई। 

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5 Comments

sunanda

03-Feb-2023 08:42 PM

nice

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Niraj Pandey

09-Oct-2021 04:16 PM

शानदार 👌👌👌 लाजवाब

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Shalini Sharma

29-Sep-2021 11:55 AM

Nice

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